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आखिरी चिट्ठी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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अंत में
हम तोरा तरफ से एगो पत्र लिखलियन हे
भगवान के
श्री श्री सोसती
सरब उपमा जोग
धरम औतार
धरम के मूरत
नामधारी
श्री श्री एक सौ आठ
महाराजधिराज
हे तिरलोक के तबलची
हे गगन के गवैया
सृटि के सरंगिया
पातालपुरी से
किटकैयाँ बजबै वाला
ब्रह्मा विष्णु महेश
तिनभैया के
चरण कमलन में
हम कचभैया के
कोटि कोटि प्रणाम!
देव,
दास के निवेदन हे
कि होली के दिन हे
न तेल हे न बेसन हे
डालडा के डिब्बा भी खाली हे
एक रूपया के एगो
नोट हमरा पास हे
ऊ भी जाली हे
ओकरा बदला दा
एक रूपैया में
हमरा होली में
सब सामान मंगबा दा
खोलला हे तो
कंट्रोल ई जमाना में
कि कूपन हमेंसा
रक्खे पड़ऽ हे
सिरहाना में
कागज भी अइसन हे
कि फट गेलै हे
उन्नीस के जगह पर
एक रहले हे,
और नौ हट गेलै हे
एकरो बनबा दा
कूपन बनाबै बाला से कह दा
कि हम एक कप चाय देबै
एक काली गाय देबै
दस बीघा खेत देबै
हर बैल समेत देबै
एतना करो तब तो देव हा
नै तों सौ गिरहकट्ट हा
अउ जइसे हियाँ नेतागिरी हे
वैसी घटमाघट्ट हा तों।