भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इनरा मरि गइल / केशव मोहन पाण्डेय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:44, 2 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव मोहन पाण्डेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहीं होत होई नादानी
बाकिर
हमरा गाँवे तऽ
इनरा के पानी
सभे पीये
सबके असरा पुरावे इनरा
तबो मरि गइल
ईऽ परमार्थ के पुरस्कार
काऽ भइल?
समय के साथे
लोग हुँसियार हो गइल
इनरा के पानी
बेमारी के घर लागे लागल
लोग रोग-निरोग के बारे में
जागे लागल।
लोग जागे लागल
आ इनरा भराए लागल
लइका-सेयान
सभे कुछ-कुछ रोज डाले
इनरा के सफाई के बात
सभे टाले,
अब इनरा के साँस अफनाए लागल
लोग ताली बजावे लागल
कि अब केहू बेमार ना होई।
आज हाहाकार बा पानी खातिर
बात बुझाता अब
कि आम कहाँ से मिली
जब रास्ता रुन्हे खातिर
लोग बबूल बोई।