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चुप्पियाँ / आनंद गुप्ता

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चारों तरफ चुप्पियाँ थी
सारे पेड़ चुप थे
जबकि उसके विरुद्ध तमाम साजिशें जारी थी
एक कोयल की कूक से टूटी खामोशी
आकाश का सीना छलनी
फिर भी चुप्पियाँ तारी
बादलों के लिए असहनीय थी यह स्थिति
गरज पड़ा बादल
पहाड़ चुप था
जबकि सैकड़ों ज़ख्मों के निशान स्पष्ट थे
एक प्रेमी ने
अपनी प्रेमिका का नाम जोर से पुकारा
पहाड़ बोलने लगा
सिकुड़ते तलाब की चुप्पी
तो एक बच्चे के लिए बिल्कुल असहनीय थी
उसने तलाब की तरफ एक कंकड़ उछाला
एक कंकड़ से काँप उठा तलाब
शहरों,कस्बों और गाँवों में
अब भी कुछ लोग थे
चुप्पियों के खिलाफ
हवा में लहराती जिनकी मुट्ठियों की अनुगूँज
सत्ता के गलियारे तक पहुँच ही जाती थी
पर आश्चर्य है
तुम्हारी चुप्पियाँ कभी क्यूँ नहीं टूटती?