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एक नदी / नईम

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एक नदी
अनचाही दूरी दे, बह गई!

आरपार मुझमें से
होकर जो जाती थी,
जी भरकर
हँसती-बतियाती थी;
आज रेत अँजुरी में
छन-छनकर रह गई।

मौन हैं
किनारे के रूख,
घाट के पत्थर,
गहराता सन्नाटा
अपना ही प्रतिउत्तर;
जलमग्ना छाती
कैसे सूखा सह गई?

यात्राएँ खेत रहीं
पाल हुए बेमानी,
सूरतें नहीं आतीं
छबियों में पहचानी;
उम्र की कगार
सहेजूँ जब तक ढह गई।

एक नदी
अनचाही दूरी दे, बह गई।