भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुढ़शाला के बेयान / 5 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:21, 16 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=बु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुढ़शाला के बिहरा

1.

कुतुबपुर बा गाँव, ह भिखारी ठाकुर नाँव।
बाबू भईया सब केहू के परत बानी पाँव॥
सब केहू के परत बानी पाँव हमरे राजा।
ऊपरे से चिकन बा चमवा के छाजा॥
तीन दिन का सेखी में, उड़ावत बानी मजा।
बूढ़ा-बूढ़ी का दुख भइल बा, लागत नइखे लाजा॥
बाबू-भइया एकमत होके सब मिलि के समाजा॥
एह अरर्ज, पर मरजीं करीं, मानवां के ताजा॥
महाबीर के नाम सुमिर लीं, जेह में बाजी बाजा।
बुढ़शाला बनवाईं ना त होत बा अकाजा॥
बाबू सब केहू के परत बानी पाँव, ह भिखारी ठाकुर नाँव॥

2.

हिन्दू-मुसलमान, हमरा कहला पर दीं कान।
नाहीं त होत बा बूढ़ के अपमान॥
होत बाटे बुढ़ के अपमान हमरे भाई॥
बच्चापन से जेकरा के तूँ कहत अइलऽ माई॥
तेकरा खातिर अब काहे तूँ हो गइल कसाई॥
हाकिम का हजूर जब जइबऽ, तब लेखा मांगल जाई॥
जल्दी से बतावऽ हमें का कइलऽ कमाई।
नोंह झरी तहिया ओह जून करबऽ का उपाई।
अँखिया से लोर ढरकी कुछुओ ना कहाई।
कहे ‘भिखारी’ अबहीं तूँ बुढ़शाला दऽ बनवाई॥
ना त होत बाटे बुढ़ के अपमान॥