भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरती / 1 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 16 मई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रसंग:

सिंह-वाहिनी दुर्गा की आरती में कामना की गई है कि वे भव-निधि पार करा दें।

तेबड़ा

जय जय मात सुनहु पुकार॥टेक॥
उधकेसी जग जननी के सजल अजब शृंगार।
भुज बिराजत खर्ग खप्पर रहत सिंह सवार॥
करत भक्षण मांस सो नित हरत धरनी भार।
लाल लहँगा जड़ित साड़ी तेल-सेनूर टहकार॥
कहे ‘भिखारी’ मोर नइया करहु भवनिधि पार।जय जय मात सुनहु पुकार॥