भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बना मैं स्वयं तुम्हारा गान / रामइकबाल सिंह 'राकेश'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हें देकर अन्तर्मन दान,
बना मैं स्वयं तुम्हारा गान।
पृथक रह तुमसे मेरे प्राण-
न पाते अपने को पहचान।
तुम्हारी धनु-मुद्रा का बाण,
रहा कर मुझको ज्योति प्रदान।
विमुख होने पर तुमसे प्राण-
न पाते स्वयं-अन्य को जान।
गगन की परिखा में अनजान,
ऊर्ध्वगत रवि-शशि ज्योतिर्मान।
रही मानो पृथिवी कर ध्यान,
तुम्हें देकर अन्तर का दान।
सृष्टि में करता समिधधान,
सुधा-स्वाहा से बीजाधान-
तुम्हारा अन्तर्याम वितान-
प्राण का धर्ता केन्द्र महान।