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आहुति का हुतशेष हवन घृत / रामइकबाल सिंह 'राकेश'
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आहुति का हुतशेष हवन घृत,
कहाँ धरा में करूँ समर्पित?
गहन कालनद में अन्तर्मन,
तड़प-तड़प करता वनरोदन
सत्य न जीवन का अभिव्यंजन-
कर्मों के रूपों में विम्बित।
प्राण-प्राण में विषमय दंशन,
मौन वेदना का उद्वेलन,
चिन्मयता का आत्मनिवेदन,
भू के आलिंगन में मूर्छित।
लपटों में आशा का मधुवन,
ज्वलित चिता का जैसे इन्धन,
कुंठित क्या न अकंुठित दर्शन,
नाभिबिन्दु प्रज्ञा का कम्पित?