खुले मानव के लिए ही नहीं पृथिवी-पुत्र का मन,
स्मरण-अम्बर में घिरे तृण के लिए भी प्रेम के घन।
सर्वभावन देवता है धरा मानव का नमस्कृत,
करें जीवन-कुसुम हम उसके चरण-रज पर समर्पित।
गान नूतन दे भुवन को भूमि-जन का हृदय-बन्धन,
स्मरण-अम्बर में घिरे तृण के लिए भी प्रेम के घन।
अग्रगन्धा धरा की रथनाभि से ज्योतित निरन्तर,
जुड़ें जीवन-तन्तु एक अखण्ड नव चैतन्य से भर।
व्याप्त कर पुर ग्राम वन, गिरिप्रान्त को सर्वांगशोभन,
स्मरण-अम्बर में घिरें तृण के लिए भी प्रेम के घन।