दस पैसे / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
चिड़िया जी को पड़े मिल गए दस पैसे
लगी सोचने इनको खर्च करूँ कैसे
क्या मैं अपना नया घोंसला बनवा लूँ
या फिर इसमें ही फर्नीचर डलवा लूँ
नए रूप में नीड़ सजा लूँ तो कैसा
मेहमानों पर रोब पड़े धनिकों जैसा
मन में आने लगे ख्याल ऐसे-वैसे।
क्यों न किसी दिन पिकनिक पर निकला जाए
मुगल-गार्डन दुनिया भर के मन भाए
क्या पड़ोसियों को दावत पर बुलवा लूँ
सबको खुश करके अपना मन बहला लूँ
मौज मनाऊँ, लोग मनाते हैं जैसे।
बच्चों को जूते भी तो पहनाने हैं
कपड़े नए चिरौटे के सिलवाने हैं
ठीक रहेगी अपने लिए एक माला
ज्यादा जेवर करते है गड़बड़ झाला
सभी काम निबटाने है जैसे-तैसे।
तभी एक मानुस देखा लंगड़ा-लूला
दुख के डर से, सुख का नाम तलक भूला
उसे देख चिड़िया ने सब विचार छोड़े
उसको सारे पैसे दिए, हाथ जोड़े
चिडिया जी ने पैसे खर्च किए ऐसे।