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असम: फरवरी 1983 / कौशल किशोर

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 जहाँ हत्या
 रक्तपात का खेल जारी है
 वहाँ आदमी
 उसके लहू की कीमत क्या होगी
 क्या होगी वहाँ
 एक जीवन की कीमत?

 ज़िन्दगी के मानचित्र पर
 यहाँ भागते
 पीछा करते
 पलटते
 फिर दौड़ते कदमों की आहट है
 यहीं हैं उनकी इच्छाएँ
 यहीं है उनकी सुबह
 उनका दिन
 उनका सूरज
 जो कभी भी आखिरी हो सकता है
 किसी भी वक्त

 बैरकों के दरवाजे खोल दिये गये हैं
 यहाँ की अमानुषिकता फर्क नहीं जानती
 नहीं जानती कि मारा है इन्सान
 या मारा है जानवर

 इधर बिखरी लाशों की ढूह पर
 बैठी बुढिया क्यों रो रही है
 किसके लिए
 उधर जल रही झोपडि़यों से
 कौन सुलगा रहा अपनी सिगरेट?

 क्या कहा?

 असम तेल की खान
 या मृत्यु की कालिख में डूबा नेल्ली।दारांग
 मंगलडोई दिगबोई बोईंगगांव
 कैसा लगता यह मांस का भण्डार
 रायफल की नाल से
 जब झांकता है तानाशाह
 बोलो-
 कैसा लगता है समूचा देश
 कैसी लगती है आजादी
 इस दूरबीन से?