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मौसम की साँसें / कमलकांत सक्सेना

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धुँआ रहीं क्वांरे जेठ का बदन।
मौसम की सांसें आज बदचलन॥

नयनों में कचनार बो दिए
पलकों ने अपराध क्या किए
बढ़ा रहीं प्यासे ओंठ की तपन।
मौसम की सांसें आज बदचलन॥

चटकाती सुधियों के गमले
सन्यासी सपनो के बदले
सुखा रहीं झुलसे नीर का गगन।
मौसम की सांसें आज बदचलन॥

धूल सने अंतर में सरगम
अपनों की पहिचान समर्पण
जगा रहीं तप से गीत का नमन।
मौसम की सांसें आज बदचलन॥