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बरसाती मौसम / कमलकांत सक्सेना
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बहुत अकेलापन अब हृदय कचोटने लगा।
तिस पर ये बरसाती मौसम सालने लगा।
हर क्षण, हर पल मीलों-सा लम्बा है
दूर दूर तक छोर नहीं दिखता है।
अभिलाषाओं के बादल प्यासे हैं
मन को मन का मीत कहीं छलता है।
फूलों का शीशमहल आनन ढालने लगा।
तिस पर ये बरसाती मौसम सालने लगा।
कभी कभी किस्से भी सच लगते हैं
और कभी तो साये भी जगते हैं।
भोर नहीं हो पाती उससे पहिले
रोम रोम में कांटे से उगते हैं।
सपनों का कोलाहल जंगल पालने लगा
तिस पर ये बरसाती मौसम सालने लगा।
सुधियों के पंछी को उड़ा दिया है
नयनों का खारापन गला दिया है।
माटी में मिलना माटी का कंचन
इसीलिए आंगन को लिपा दिया है।
शबनम का उजलापन संयम टालने लगा।
तिस पर ये बरसाती मौसम सालने लगा।