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दीप दिल में जला दिया तूने / उत्कर्ष अग्निहोत्री
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दीप दिल में जला दिया तूने,
इक कलन्दर बना दिया तूने।
जी सकूँ इसको इतनी ताकत दे,
मुझसे क्या क्या लिखा दिया तूने।
फूल महकें यही तो ख़्वाहिश थी,
एक पौधा लगा दिया तूने।
ठक दफ़ा कह दिया जिसे अपना,
उसका रुतबा बढ़ा दिया तूने।
देखकर बेज़ुबाँ हुआ जिसको,
ऐसा मंज़र दिखा दिया तूने।
खींच लेगा वो अपनी जानिब ख़ुद,
इक क़दम जब बढ़ा दिया तूने।