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कहानी तेरी-मेरी / अंकिता जैन

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मैं लिखती रहती हूँ
घर की दीवारों पर
कहानी तेरी-मेरी
जैसे किसी बड़े से मंदिर की दीवारों पर
गोदे जाते हैं
श्लोक
शास्त्र
और प्रार्थनाएँ
और तुम करते रहते हो अनदेखी
उन दीवारों पर लिखी
कहानी तेरी-मेरी
जैसे कई हज़ार श्रद्धालुओं से होते रहते हैं अनदेखे
वे सभी श्लोक
शास्त्र
और प्रार्थनाएँ,
उन्हीं श्रद्धालुओं से
जो करते हैं दावा भक्त होने का
सीना ठोककर
दान देकर
रतजगे कर
चौकियाँ बैठाकर
तीरथ जाकर
लेकिन फिर भी उन्हें लगते हैं आकर्षण भर
कोई सुंदर चित्रकारी हो जैसे
कोई रंगों की पहेली हो जैसे
या बस चीख़ते-पुकारते शब्द
जबकि हैं वो, उन्हीं के लिए लिखे गए
श्लोक
शास्त्र
और प्रार्थनाएँ
क्या तुम्हें भी दृष्टि-भ्रम है
या दिखाई ही नहीं देती
घर की दीवारों पर
चाकू से गोदी गई
कहानी तेरी-मेरी।