भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सात खून माफ़ / पंकज चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:55, 10 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्रिमिनल है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

दंगाई है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

खूनी है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

सर पर मूतता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

बस्तियां फूंकता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

बलात्कारी है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

गरिबों को रुलाता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है

अपनी जाति का है तो सात खून माफ़ हुआ
औरों की जाति का है तो निरपराधी भी साफ़ हुआ।