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परिदृश्य / अंजना वर्मा

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गाड़ी जब रुकेगी जाम में
या लाल बत्ती पर
तो आयेगा कोई साँवला—सा लड़का
शीशा साफ करेगा
हमारे रोकने पर भी नहीं रुकेगा
और फिर पारदर्शी दीवार के बाहर
खड़ा रहेगा दो क्षण
पैसे न मिलने पर गिड़गिड़ायेगा
धीमे स्वर में
जैसे मंत्र पढ़ रहा हो
फिर भी यदि हम अंधे-बहरे बने बैठे रहे
तो वह निर्लिप्त—सा
चल देगा किसी दूसरी गाड़ी की ओर
वहाँ फिर यही सब दुहरायेगा
एक कमजोर औरत आयेगी
कमर पर एक दुधकट्टू नंगा बच्चा लिये
अपने मुँह पर
अपनी पाँचों उंगलियाँ जोड़ेगी कौर की तरह
बच्चे को दिखा-दिखाकर
हाथ पसार देगी
बाजार में चलते हुए
कोई बच्चा मिलेगा
काला, मैला, दुर्बल और फटेहाल
"बाबू खाने के लिए पैसे दो"
आगे बढ़ने पर कूड़े का ढेर मिलेगा
उस पर दो जीव दिखाई देंगे
कुछ सूँघते हुए कुत्ते
और कचरे बीनते हुए बच्चे
गाड़ियाँ चली जायेंगी अपनी राह
लोग चले जायेंगे अपने घर