भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / अखिलेश श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 29 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ मिल कर खोजें प्यार
लुप्त प्रजातियों की भाँति
चाहो तो पूछ लो
अरगनी पर टँगे चाँद से
या फिर डाल दो
इक मेल मंगल को!

परिंदों,
किसी खुली खिड़की से घुस जाओ
आसमान के घर में
या फिर
डाल्फिन से कहो
खोजे समुंदर के तलहट में
हो सकता है
टाइटॅनिक के नीचे दबा हो प्यार!
 
वर्तमान और निकट भविष्य में भी
प्रेम इतना दुर्लभ है
कि आओ सब मिल कर
प्रेम को परमात्मा मान लेते हैं!
 
हम दोनो को
खोजते रहना चाहते हैं
पाना नही!
 
अभी खबर आयी है
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से
पाए गये है दो लोग प्यार करते हुए
एक को गोली मारी गयी
दूसरे को काटा गया गडासे से
प्यार का खून पा
लहलहा गयी प्रधान की चुनावी फसल
पंच के फ़ैसले पर
उठा ले गये कुछ लोग
प्रेमी की बहन को खेत में
परमात्मा, प्रेम का हश्र देख
बिला गये है जाने कहाँ!
 
देख ले रे नकुला
जंघवा पर तिल।
हो हो हो
कै बरिस के होई
ए फ़ैसला त
पंचे करिहे।
खी खी खी
 
सारे गाँव वाले खिखिया कर हँस रहे थे
 पर खेत शर्मिंदगी झेल नहीं पाए
सूखा गयी सरसों
किरा गये धान
सारे पत्ते गिरा कर
नंगी औंधी पड़ी है अरहर
गाँव के बीचो बीच
लड़की की तरह!