भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं अपनो मन-भावन लीनौं / रसिक बिहारी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 30 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसिकबिहारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatP...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं अपनो मन-भावन लीनौं, इन लोगन को कहा न कीनौं।
मन दै मोल लयौ री सजनी, रतन अमोलक नन्ददुलारे॥
नवल लाल रंग भीनो।
कहा भयो सब के मुख मोरे, मैं पायो पीव प्रबीनौं।
'रसिकबिहारी' प्यारो प्रतीम, सिर बिधनां लिख दौनौ॥