Last modified on 31 जुलाई 2018, at 13:16

मेरी प्रान-सजीवन राधा / सुन्दरकुवँरि बाई

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:16, 31 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुन्दरकुवँरि बाई |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी प्रान-सजीवन राधा।
कब तो बदन सुधाधर दरसै यों अँखियन हरै बाधा॥
ठमकि ठमकि लरिकौहीं चालन आव सामुहे मेरे।
रस के वचन पियूष पोप के कर गहि बैठहु मेरे॥
रहसि रंग की भरी उमंगनि ले चल संग लगाय।
निभृत नवल निकुंज विनोदन विलसत सुख-दरसाय॥
रंगमहल संकेत जुगल कै टहलिन करतु सहेली।
आज्ञा लहौं रहौं लहँ तटपर बोलत प्रेम-पहेली॥
मन-मंजरो जु कीनन्हों किंकरि अपनावहु किन बेग।
सुन्दरकंवरि स्वामिनी राधा हित की हरौ उदेग॥