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किरतन गाते चलो / प्रभात कुमार सिन्हा

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चल मैया! मलिकार ने बुलावा भेजा है
हमलोगन के भले के लिये ही वे जेहल गये हैं
घबराना नहीं है
अब उनकी जनानी और बाल-बच्चा ही मलिकार हैं
सब दुख अब दूर हो जायगा
चलो रजधानी
घरे-घर मुखिया जी रेल-टिकस बांट रहे हैं
अंचरा में आलपिन से टांक लेना
हम तो गोदल्ली हैं हमको टिकस नहीं लगेगा
जनता इसपिरेस से सभी पटना जा रहे हैं रैला में
टिटिया हमलोग को नहीं रोकेगा
जेहल में रहने पर भी उनका परताप है
मुखिया तो हमारा एक नम्मर का मुखिया है
हारने पर भी वही सबका मुखिया है
उसके आँख से किच्ची बहे चाहे मुंह से लार चुए
मुखिया तो मुखिये है
उसका कहना टालने पर पिपरपांती का
बढ़म राकछस भी बिगड़ जायगा
डिहवाल एंड़ी के भार नाचने लगेगा
बस एक-एक लाठी लो और चलो पटना
लौटती में तुमको साड़ी बिलौज मिलेगा
हमको भी मिलेगा फराक-पैंट
जाते-आते समय पोलिथिन में
बांध कर मिलेगी सब्जी-पूड़ी
मलिकार के नाम से किरतन भी बना है
वही गाते चलना है
वही गाते लौटना है
सब दुख दूर हो जायगा मैया
सब दुख दूर हो जायगा।