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जे रोअवला के खुशिया मनाई / रामरक्षा मिश्र विमल

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जे रोअवला के खुशिया मनाई
केहू ओकरा के का समझाई।

लोर रोकले रोकाला ना कतहीं
कहीं पूड़ी आ पूआ छनाला
कहीं मरघट में बदलेले बगिया
कहीं पाटी में बोतल खोलाला।

जे जहरिये में जिनिगी के पाई
केहू ओकरा के का समझाई।

नेह के कइसे सीढ़ी चढ़ी ऊ
जेकरा मन में बा नफरत के खाई
जेकरा मन में बा जंगल समाइल
कइसे अदिमी के भाषा सिखाईं।

सोचिके आवे मन में रोवाई
केहू ओकरा के का समझाई।

खून के देखि अँखिया लोराले
लोर से लोर जनमेला सभमें
आदमीयत के पीछे इहे बा
जहाँ करुना हजार बार जनमे।

कइसे अदिमी के अदिमी बनाईं ?
केहू ओकरा के का समझाई।