Last modified on 4 अगस्त 2018, at 18:46

फागुन के आसे / रामरक्षा मिश्र विमल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:46, 4 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामरक्षा मिश्र विमल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फागुन के आसे
होखे लहलह बिरवाई।

डर ना लागी
बाबा के नवकी बकुली से
अङना दमकी
बबुनी के नन्हकी टिकुली से
कनिया पेन्हि बिअहुती
कउआ के उचराई।

बुढ़वो जोबन राग अलापी
ली अङड़ाई
चशमो के ऊपर
भउजी काजर लगवाई
बुनिया जइसन रसगर
हो जाई मरिचाई।

छउकी आम बने खातिर
अकुलात टिकोरा
दुलहिन मारी आँखि
बोलाई बलम इकोरा
जिनिगी नेह भरल नदिया में
रोज नहाई।