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नेह अमिरित झरित जो कबो / रामरक्षा मिश्र विमल
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नेह अमिरित झरित जो कबो
जीव हुलसित फरित जो कबो
जोत जिनिगी में जगमग रहित
मन अन्हरिया हटित जो कबो
लोर काहें नयन से बहित
ई दरदिया घटित जो कबो
आसरा मोर होइत सफल
भास तनिको मिलित जो कबो
पूछितीं अर्थ आनंद के
पट 'विमल' के खुलित जो कबो