आँखि लागि गइल / रामरक्षा मिश्र विमल
अजुओ जो कबो भूख जोर से लागेला
पेट अकड़े लागेला दरद से
त याद आवेले माई
हमनी के खियावे में
राते सुति गइल उपासे
आ आजु भिनसहरे से लागल बिया
जौ बूँट रहरि आ तिरछी के
मेलौनी अनाज लेके
छपलस्रिभुँजववलसि
पसेना पसेना होके जाँत में पिसलसि
आ साँझि होखे से पहिले
हमनी के
खियाके सुता दिहलसि
जब हमनी के कवनो भूल-चूक पर
बाबूजी आग बबूला हो जइहें
धरती आ असमान एक कऽ दीहें
हमनी के खोजे में
त अपना आँचर में लुकववलसि माई
अपने जोर-जोर से साँस लेवे
धड़कन बढ़ि जाय दिल के
बाकिर हमनी के बँचवलसि हर बार
कवनो डर से कवनो अनहोनी से
आजु जब भी चिंता से मन भर जाला
दर्द गतरे गतर में समा जाला
तनाव मन प्राण के सँघतिया बन जाला
आ अचके मुह से निकल जाला "माई रे"
तब बुझाला
जइसे आस्ते-आस्ते आवतिया माई
गते से पँजरा बइठलि
हमार माथ नववलसि
अपना गोदी में रखलसि
अब गते गते
अङुरी चला रहल बिया सर पे
ककही नियन
मन रिलैक्स हो रहल बा
एगो अजीब सुख आ शांति के अनुभव होता
अब कवनो एहसास ना रहल दर्द के दुख के
आ आँखि लागि गइल।