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प्रतिमा रोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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21
मर जाऊँगा,
तुम्हारे लिए जग में
फिर आऊँगा !
22
पूजा न जानूँ
न देखा ईश्वर को
तुमको देखा !
23
प्रतिमा रोई
कलुष न धो पाई,
भक्तों ने बाँटे ।
24
व्यथा के घन
फट जाएँ जो कभी
पर्वत डूबें ।
25
नाग-नागिन
लिपटे तन-मन
जकड़ा कण्ठ ।
26
पाषाण थे वे
न पिंघले ,न जुड़े
टूटे न छूटे ।
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