भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनंतिम / अशोक कुमार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:52, 15 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब भी मैं किसी वृद्ध को देखता हूँ
सोचता हूँ
क्या एक दिन मैं भी बूढ़ा हो जाऊँगा
जब भी मैं किसी अधेड़ को देखता हूँ
सोचता हूँ क्या मैं अधेड़ हो गया हूँ
जब कभी किसी युवा को देखता हूँ
अपना बीता हुआ चेहरा
और रीता हुआ समय उसमें पाता हूँ
जब कभी किसी किशोर और शिशु को देखता हूँ
अपने अल्हड़पने और किलकारियों की अनुगूंज सुनता हूँ
मैं तमाम अनंतिम सत्य देखता हूँ
खंडित और विसर्जित होने के सारे तर्क
अस्वीकार कर देता हूँ।