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अधूरा आदमी / अशोक कुमार

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बचपन से ही आधा-अधूरा था वह
पाठशाला की पाठों को सही ढंग से पढ नहीं पाया
और बन गया अधूरा आदमी

अपनी अधूरी भाषा में चिड़ियों से बातें करता था वह
अधूरी ज़बान में चिड़ियाघरों के लंगूरों से बदजबानी कर जाता था

नदियों के ऊपर बनी पुलिया पर
अधूरे कदम रख पाता था वह
और अधूरी पोशाक में
बस सभ्यता की एक शेष होती साख भर होता था वह।

अधूरे आदमी के सपने कभी पूरे नहीँ होते
पूरी तरह नहीं जानता था वह
और जीता था अपनी अधूरी जिन्दगी
पूरे मनोवेग से।

अपनी पूरी नींद से
अकबका कर जागता था आदमी
जब खूबसूरत इच्छायें
पूरे सपने में अधूरी बन
हताशाओं के पार चली जाती थीं

अधूरे ख्वाब को जागी आँखों में लिये जागता था अधूरा आदमी
अधूरा आदमी आधी सचाई बन जाता था
और आधे झूठ के साथ जीता था अपनी पूरी ज़िन्दगी।