भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असमाप्त प्रतीक्षाओं के बीच / अशोक कुमार पाण्डेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 1 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार पाण्डेय |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुःख कहने पर मुझे बुद्ध नहीं यशोधरा की याद आती है
 
परित्यक्ता होना दुःख है
त्याग न पाना महादुख है
सुख की तलाश में उसे भी निकलना था
राजपथ भी निषिद्ध जिसे जनपथ भी
 
न शव में दुःख था न जरा देह में
दुःख महल में था अदेह, अदृश्य, अलक्षित
शुद्धोधन त्याग सकता था महल
यशोधरायें अभिशप्त उन्हें वरने को
 
महलों से चलीं तो मठों तक पहुँची मुक्तियाँ
निर्वाण की तलाश में गलती रहीं गौतमियाँ यशोधराओं सी
 
वह जो एक बार चढ़ा शूली पर ईश्वर हुआ
वे जिनकी देह पर निशान अनगिनत शूलियों के रहीं अलक्षित अनाम
तुम्हारी देह से पहले उन निशानात को चूमना चाहता हूँ
 
उस पहली गर्भवती स्त्री के पास बैठना चाहता हूँ कुछ देर
चला गया था जिसे छोड़ कर उसका बुद्ध शिकार पर
और आग बचाते भरता रहा जिसकी आँखों में जल सदियों तक
 
मैं उस आग से गुजर कर
उस जल में भीगना चाहता हूँ।