भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुलाब / प्रज्ञा रावत
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 1 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रज्ञा रावत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कितना भी खराब हो समय
एक गुलाब के फूल से
ज़रूर स्वागत करूँगी मैं
तुम्हारा कविता
कितना ही थका हो तन
मेहमान से पूछे बिना
उम्दा चाय चढ़ा आऊँगी
चूल्हे पर मैं
कितनी ही आगे बढ़ जाओ
कविता तुम
तुम्हें दो और दो बराबर
चार नहीं होने दूँगी कभी मैं।