Last modified on 1 सितम्बर 2018, at 16:56

इतिहास नही हैं ये / नीरजा हेमेन्द्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:56, 1 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनसान पड़ा विस्तृत मैदान
तपिश में झुलस उठीं नन्ही दूब
शेश नही कुछ भी
अस्तित्व विहीन तो नही हैं... नन्हीं दूब...
कालातीत भी नही हैं ये...
भूमि पर विचरते
अनेक जीवों का
पोशण करते हुए भी इन्हांेने
अपने अस्तित्व को बचा कर
रख लिया है
भूत से वर्तमान तक सृजित कर
सभ्यतायें व गौरवमयी इतिहास
ये कभी नही बन सकतीं इतिहास
न ही सिमट सकती हैं अतीत के पन्नों पर
वर्तमान के पन्नों पर अंकित कर
अपने अक्षुण्ण पद चिन्हों को
विपरीत ऋतुओं में भी बचा कर
रख लिया है, इन्हांेने
आने वाली पीढ़ियों के लिए
अपनी जड़ें... कुछ हरी कोंपलें... उनका वर्मतान...
अनुकूल ऋतुओं का परावर्तन
बारिश की प्रथम फुहार
वीरान मैदान में उग आयी हैं
पुनः नन्ही-नन्ही दूब
सुदृढ़ जड़ों के साथ...