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वह मजदूर / नीरजा हेमेन्द्र
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दूर-दूर तक फैले हुए
गन्ने के खेत
आसमान का वितान
झाँकता हुआ पीतवर्णी
सूरज/अग्निवर्शा
परिश्रम करती
सूखी खाल वाली
दो हथेलियाँ
मिट्टी, झाड़-झंखाड़ से
अद्वितीय प्रेम करता
तालबद्ध हो जाता है वह
पसीने से सिंचित भूमि
लहरायेंगी हरी फसलें
वह आयेगा
कुछ लोगों के साथ
फसलें कट जायेंगी
बुढ़ाया शरीर
आसमान ताकतीं
बूढ़ी आँखें
प्रतीक्षा करेंगी
आकाश गंगा से निकलते
प्रकाश पुंज का
आकाश पटल से उठेगा
वात-बवण्डर
क्षणिक आवेग को ले जाएगा
कहीं दूर... दूर... ... दूर...
इर्द-गिर्द रह जाएंगी
गन्ने की कोपलें
कुछ सूखे पत्ते
मिट्टी, झाड़-झंखाड़
उसका परिश्रम
उसका पसीना।