अठाईस / प्रबोधिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
बंदर को अदरक का स्वाद चखाने आये
अच्छा किया उसने अदरक को फेंक दिया
तेरी तरफ से मुँह मोड आँख झेंप लिया
तुमने लकड़हारों को मणियों की माला दी
गूँजा समझ उसने तोड़-तोड़ फेंक दिया
अब भी बोलो! तेरा दिल टूटा है की नहीं
दिल का सौदा करना छूटा है या कि नहीं
मना किया शूली पर दिल को चढ़ाओ न कभी
गुंडों ने दिल को कहो लूटा है कि नहीं
ऊँची मुहब्बत के तुम पाठ पढ़ाने आये
जिसकों चाहा तुम वह बहुत आवारा निकला
तुरंत लूढ़क जाने में समझो पारा निकला
उतना लुढ़के हुए को दिल न कभी छूएगा
समझा था दिल का मगर पैसे का मारा निकला
आठ-आठ आँसू रोओ कि कौन चला गया
सोचो कि सिक्के पर कैसे वह छ्ला गया
अच्छा हुआ है झंडे के शाहज़ादा तुम
दुनिया न देखी तो देख यहीं छला गया
मूँछ तान दुनिया को प्रीत सिखाने आये