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पन्द्रह / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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आओ रोलें भारत वासी
मिल-जुल कर सब संगी साथी
भारत का भाग्य सितारा हा! भारत का सदृढ़ किनारा हा!
अपनेपन में डूबा जाता, भारत का सभी सहारा हा!
मेरे गौरव गढ़ के वासी
धिक-धिक मेरे अंतर घाती

फूलों की सेज बिछाये हैं हर भोग जहाँ ललचाये है
सुकुमार षोडषी अगल-बगल आँचल रंगीन बिछाए है
देखें कैसी हिम्मत बाले
होते है ये भारत बासी
दूसरी तरफ माँ का आँचल खींचता विदेशी जाता है
तेरे हिम किरीट पर ताण्डब करता राक्षस आता है
कामिनी से हाथ मिला न डिगे
शाबाश! अरे! तब सन्यासी
हा! दुख से ही कहना पड़ता विधि वीर न भारत में गढ़ता
तन की हड्डी भी दान करे, यह पाठ न अब कोई पढ़ता
रो दधीचि के पुत्र! राम गृह के वासी
आओ! रो लें भारत वासी