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एकतीस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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हाथ का कगन धरो बली पंथ पर सजनी
बढ़ा पग नित दिवस-रजनी

हो गया जिस पर भुवन मोहित दखल है चाहता
कामिनी तुम काम कौतूहल न केवल, हो हलाहल भी
वक्त आने पर कभी पूंषत्व भी तुमसे क्षमा है माँगता
उतारो मखमली चोली कवच धर वक्ष पर सजनी
बढ़ा पग नित दिवस रजनी
आज कोमल कमल कर में तुम धनुष और बाण लो

छूड़ा दे मेंहदी का रंग फीका है ऐन के बाण से मत मार
जरा भोहे कड़ी करके तूँ शर संधान लो
सजी हैं सब्ज चूनर में सखी री देश की धरणी
बढ़ा पग नित दिवस-रजनी

रह गया रीता नयन अंजन बिना तो क्या हुआ
ओठ रंगे बिन रहे, केश छूते कीलिप से
गुच्छ फूलों के सखी मुरझा गए तो क्या हुआ
आज रण परिधान लो चल दो, न बाजे पैजनी
बढ़ा पग नित दिवस-रजनी