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माटी खनौनी / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

1.

तारी नानी नानर नाई, तारी नानारे नान।
तारी नानी नानर नानी, तारी नानारे नान।
पूरो कि पूरो दोसी, चार खूटक चौंका दाई
पूरो कि पूरो दोसी, चारी खूटक चौका।
देवयो कि देयो दोसी, हुमे ग्रास।
तरपो कि तरपो दोसी, फुल मंद के छक दाई
तरपो कि तरपो दोसी, फुल मंद के छाक।
निवतो कि निवटों दोसी, कारी बीमोरा दाई
निवतो कि निवतो दोसी, काटी बिमोरा।
का सबद सूनी दीमी, तै केंवरी दै दै दाई
का सबद सूनी दीमी, तै केंवरी दै दै।
माटी माँगें आँही, कहके तै केंवरी दै दै दाई
माटी माँगें आँही, कहके तै केंवरी दै दै।
खोलो कि खोल देमी, कूची केंवरिया दाई
खोलो कि खोलो दीमी, कूची केंवरिया।

शब्दार्थ –हुमेगरास=होम/धूप/दीप, फुल मंद छाक=दारू से भरा दोना, तरपो=तर्पण करो, निवतो=आमंत्रित करो, बिमोरा=बमीठा, केंवरी=दरवाजा।

माटी खनौनी माँगर माटी रस्म का एक अंग है, जिसमें सुआसीने और दोसी पूर्व दिशा की ओर घर से गाँव बाहर जाकर मिट्टी खोदकर लाते हैं। पूर्व दिशा में दीमकों द्वारा बनाया गया बमीठा है। उस बमीठा के समीप पहुँचकर दोसी और गीतकारिन महिलाएँ जुवार के आटे से चौक पूरती हैं। धूप, दीप-अगरबत्ती जलाती हैं। धरती माता, ठाकुर देवता और माता महरानी का सुमिरण किया जाता है। मंद (दारू) चुहाई जाती है। मड़िया के आटे की रोटी चढ़ाई जाती है और कोरा धागा लपेटा जाता है। फिर सब लोग हाथ जोड़कर विनती करते हैं- हे धरती माता, ठाकुर देव, माता महरानी! आज हम लोग विवाह के लिये माँगर माटी लेने आए हैं। माटी खोदने आए हैं। तुम हमें कुदाल चलाने की अनुमति दो।

दोसी तुम चारों कोनों में कुदाल चलाओ और मिट्टी खोदो। दोसी हमने हूम -धूप, दीप-अगरबत्ती से सबकी पूजा कर दी है। मंद भी चूहा दी है। अब तुम दीमक के बनाए हुए बमीठे को भी विवाह में आमंत्रित कर लो। दीमक तुम हमें मिट्टी लेने दो। अपने दरवाजे बंद मत करो। हम तो शुभ कार्य के लिये थोड़ी सी नेग की मिट्टी लेने आए हैं। हम तुमसे मिट्टी माँग रहें हैं। दीमक कहती है – मेरे द्वार खुले हैं, तुम जितनी चाहो, उतनी मिट्टी ले जाओ।

2.

गाई दारे मंगरोही माटी, गोड़ धोई ले रेउउ।
कहय धन रे उमरडारा, साटो जनमला सुधारे उउ।
जोडनी : सेमी के ढेखरा तुम्हारे अंगना चीन्ही लयहें रेउउ।
दाऊ जवानी रेंगना, धीरे गायले उउ।
मंगरोही माटी, गोड़ धोई ले रेउउ ।
कहय धल रे उमर डारा, सातो जनमाला सुधा रेउउ ।
पथरा के मीढ़ी माटी के नहाडोर, गारी बोली भला दयले।
माया ला झिना तोर, धीरे गाय ले उउ ।
मंगरोही माटी, गोड़ धोई ले रेउउ ।
कहय धन रे उमर डारा, सातो जनमाला सुधा रेउउ ।

शब्दार्थ –उमरडारा-अमर वृक्ष की डाल, ढेखरा-सूखी लकड़ी, चीन्ही=पहचान, मीढ़ी=दीवार, नोहडोर=मिट्टी से बने अलंकण, टोर=तोड़।

माँगर माटी लाते समय दुल्हन की सहेलियाँ ददरिया गाती हैं, जो रास्ते में चलती हैं, कहती है- माँगर माटी ददरिया गा दिया है, माँगर माटी ले आये है। अब सब सहेली, पानी से अपने पैर धो लो। हम कहते हैं, इस डूमर के वृक्ष की डालियाँ धन्य हैं, जो मंडप में काम आती हैं। ये सातों जन्मों का उद्धार करने वाली हैं, सेमी वृक्ष की सूखे ठूँठ भी आँगन में गाड़ दिया है उसी के सहारे हमारे आँगन में सेमी की बेल चढ़ेगी। उसको हमने अच्छी तरह से जान लिया है, पहचान लिया है। जैसे-जैसे बेल ठूँठ पर लपेटती चले जाएगी। बढ़ती चली जायगी। वैसे-वैसे दुल्हन की जवानी निखरती जागी। बेल चढ़ने के लिये सहारे की जरूरत होती है।

पत्थर की दीवार में मिट्टी से नोहडोरा (उभरे भित्ति उद्रेखण) सुंदर लगते हैं। मैंने पत्थरों की दीवार में नोहडोरा दाल दिये है, मुझे गाली भले ही दे देना। लेकिन तुम मुझसे माया ममता का रिश्ता मत तोड़ना।
यह दादरिया गाते-गाते ‘माँगरमाटी’ को आँगन में एक कोने में रख देते हैं।