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विवाह - 1 / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गावे गाना ला।
सीसे नागिन बहिस गा धरती माता ला।
धरती माता बहिस आने दाई ला।
आने दाई समोखिम सारे दुनिया ला
चाँद सूरज नर नारी दोनों देयथ उजेला ला।
हौ रे-हौ रे जल रानी पावन बरोवय रे डीओएस।
कच्चा सुपाड़ी फोड़े माँ फोटाहीं।
लगे हरा माया छोड़े माँ छूटाहीं।
पानेला खावय खैर नहीं आय।
तै तो गाय ले ददरिया बैर नहीं आय।

शब्दार्थ – सीसे=सिर पर, बहिस=ढोना, थामना, अनेदाई=अन्नमाता, समोखिस=पोषित, बरोबय=बहना, फोटा ही= फूटे, छूटे ही= छूटे, बैर=दुश्मनी, गा ले= आय=है।

यह भाँवर गीत है। इसे भाँवर फिराते समय गाँव की और बारात में आई महिलाएँ एक साथ गाती है। महिलाएँ गीत में कहती है- धरती माता को शेष नाग अपने फन पर धारण किए हुए है। और धरती माता अन्नपूर्णा माई को धारण किये हुए हैं। अन्नमाता सारी दुनिया को अपने में समेटे है। पोषित करती हैं। चाँद-सूरज दोनों स्त्री=पुरुष सारे संसार को प्रकाश देते हैं। उजाला भरते हैं। जल रानी हवा को चलने के लिये मजबूर करती हैं। उसी से ठंडी-ठंडी हवा बहने लगती हैं। उसी से पानी में लहरे पैदा होती हैं।

कच्ची सुपारी को फोड़ने में कोई देर नहीं लगती हैं। लेकिन पक्की सुपारी को फाड़ने जरा मुश्किल लगता है। इसी तरह तुम्हारी माया-ममता (देश-प्रेम) भी बड़ी मुश्किल से छूटती है। जिस प्रकार पान खाने से होंठ लाल हो ही जाते हैं, उसी प्रकार प्रेम के ददरिया गाने में कोई रोक-टॉक नहीं है, कोई दुश्मनी नहीं है। इसी गीत को सारे बाराती आँगन में बैठकर सुनते हैं और गाने वालों को ‘वाह-वाह’ करके शाबाशी देते हैं। फिर उत्साह में एक-एक ददरिया झड़ते लगने हैं।