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जन्म गीत / 3 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एक पतासा का नव सौ टुकड़ा।
एक टुकड़ो मने चूल्हा जगह मेकियो।
बाळ की ममई बठी-बठी चाख,
आवते चाट न जाते की चाट।
एक पतासा का नव सौ टुकड़ा।
एक टुकड़ो मन झोळी जगह मेक्यो।
बाळ की जी माय हिचकाड़ती चाट।
एक पतासा का नव सौ टुकड़ा।
एक टुकड़ो मन मोरी जगह मेक्यो।
बाळा की मामी जात की चाट, आवते की चाट।
एक पतासा का नव सौ टुकड़ा।
एक टुकड़ो मन हतई म मेक्यो।
बाळ की फुई आवते की चाट, जाते की चाह।
एक पतासा का नव सौ टुकड़ा।
एक टुकड़ो मन मुळ्ळा पर मेक्यो।
बाळ की मावसी जाते की चाट आवते की चाट।

-बालक के जन्म के बाद पूजन में रिश्तेदारों को बुलाते हैं और उनसे हँसी-मजाक
के लिए महिलाएँ गीत गाती हैं और जिनका नाम गीत में आता है, उसको देखकर
महिलाएँ हँसती हैं। गीत में कहा गया है कि-एक बतासे के नौ सौ टुकड़े करके
चूल्हे के पास रखा। बालक की नानी माँ आते-जाते चाटती हैं एक टुकड़ा पालने
के पास रखा, बालक की दादी माँ झूला देते हुए चाटती हैं। एक टुकड़ा मोरी के
पास रखा, बालक की मामी आते-जाते चाटती हैं। एक टुकड़ा मैंने चौक में रखा,
बालक की बुआ आते-जाते चाटती हैं। एक टुकड़ा मैंने पनिहारे पर रखा, बालक
की मौसी आते-जाते चाटती हैं।