भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
आखो उंढालो काइ कर्यो रे ढेड्या।
आखो उंढालो काई कर्यो ढेड्या।
खड़ काट्यो ने पान तुड्या वो जीजी।
खड़ काट्यो ने पान तुड्या वो जीजी।
आखो उंढालो काइ कर्यो रे ढेड्या।
आइणिं छिनाले नो डंड भर्यो रे ढेड्या।
आइणिं छिनाले नो डंड भर्यो रे ढेड्या।
आखो उंढालो काइ कर्यो रे ढेड्या।
खड़ काट्यो ने पान तुड्या ने घर छायो रे ढेड्या।
-गर्मी का मौसम निकल गया तुमने सावां लाने में देर क्यों लगाई? जीजी! हमने
गर्मी में घास काटा और पत्ते तोड़े। गर्मी में समधन का दंड भरा। घास काटा, पत्ते
तोड़े और घर का छप्पर छाया ताकि पानी घर में न गिरे।
सावां एक प्रकार का शगुन है, जिसे लेकर पुरुष ही जाते हैं। गीत वधू पक्ष की महिला
गाती हैं। यह गीत गाली का है, जिसे ‘निहाली’ कहते हैं।