भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निहाली गीत / 4 / भील
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> ताड़े जाता ते त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ताड़े जाता ते ताड़ि पीता रे लोल।
याहिणिके लावता ते वात करता रे लोल।
ताड़े जाता ते ताड़ि पीता रे लोल।
कलाल्या मा जाता ते दारू पीता रे लोल।
हलवी मा जाता ते गुंड्या खाता रे लोल।
- ताड़ के पास जाते ही ताड़ी पीते। समधन का लाते तो उसके साथ बात करते। कलाल के यहाँ जाते तो दारू पीते। हलवाई के यहाँ जाते तो भजिये खाते।