मृत्यु गीत / 9 / भील
टेक- आर तुन मनक्या जनम गमायो हंसा, नाम नहिं जाण्यो राम को।
चौक-1 हारे खाई न दिन गमाविया रे हंसा,
सोइ न गमाइ तुन रात रे, आरे हंसा सोइन गमाइ तुन रात रे
हीरा सरीका तुन जलम गमाया,
एको कवड़ी मोल नइ पायो हंसा नहिं जाण्यो राम को।
चौक-2 तन की बणाइ तुन ताकड़ी, हांसा रे हांसा,
मन को बणायो सेर रे, आरे हांसा मनको बणायो तुनसेर रे।
सुरत नुरत दोनो डांडी लगाई, हांन थारा तोलणम कछु फेर
हांसा नाम निजाण्यो राम को।
चौक-3 सकर विखरी रेत म रे हंसा, कसि पाछि आवे हाथ रे।
अरे हंसा कसि पछि आवे हाथ रे।
सरग सुवागणी ऊतरी रे, ऐसी किड़ियां बणकर चुंग।
हंसा नाम नि जाण्यो राम को।
छाप- तिरगुणी घाट संत का मेळा
कसि पत उतरेगा पार रे।
कसि पत उतरेगा पार रे।
गऊ का दान तुम देवो मोरे हंसा।
तेरा धरम उतरारेगा पार,
हंसा नाम नि जाण्यो राम को।
अरे जीव! तूने मानव जन्म खो दिया, राम का नाम नहीं जाना।
अरे मानव! तूने खाकर दिन खो दिए और सोकर रात खो दी। हीरे के समान तूने
जन्म खो दिया। मानव जीवन का मूल्य एक कौड़ी के बराबर न पाया। राम का
नाम न जाना।
इस शरीर को तूने तराजू बनाई और मन का सेर बनाया। सुरत-निरत दोनों डांडी
लगाई और तेरे तौलने में कुछ कपट है, तूने राम का नाम न जाना।
अरे जीव! शक्कर रेत में बिखर गई, वह अब हाथ में नहीं आ सकती, समय चला
गया अब क्या? उस रेत में बिखरी शक्कर को चीटियाँ बनकर चुग अर्थात् और
चौरासी लाख योनियों में भटक। त्रिगुण घाट पर संतो का मेला किस प्रकार पार
उतरेगा? गोदान करो, तेरा धरम पार उतारेगा। तूने राम का नाम न जाना।