भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धान का गीत / 2 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:11, 7 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=राजस्थानी |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चालो सखी आपां मूंग सोवा, मूंग सोवा सुसराजी रे आंगणे।
मूंग सोवा ने गीत गावां, लाडली ने परणावस्यां।
चालो सखी आपां चावल लेवां चावल लेवा सुसराजी रे आंगणे।
चावल सोवा ने गीत गावां लाडली ने परणावस्यां।
चालो सखी आपां गेहूं लेवा, गेहूं लेवां सुसराजी रे आंगणे।
गेहूं लेवां ने गीत गांवा बाई... ने परणावस्यां।