भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बन्ना नहाने का गीत / 2 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 7 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=राजस्थानी |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खेल खेल नदी बहैव, शहजादो लाडो मल मल न्हावै जी।
बन्नो पूछ पढ़ायो म्हारी बन्नी ने, तू हार पहनै जीव न्हावै जी।
हार सौहे लो म्हारे गला ऊपर, मोतीड़ा दीप ये जीलाड़ी जी।
कौन जी रो रतन कटोरी, कौन जी रा मोतीड़ो रो हारजी।
लोनी है म्हे रतन कटोरी, बदल्यो हे मोती रो हार जी।