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बन्ना नहाने का गीत / 3 / राजस्थानी
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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बनड़ो न्हाय धोय बैठ्यो बाजोट कांई आमण घूमणो।
बनड़ो कांई मांग सिरपेचा कांई सिर रो सेवरो।
मैं तो भल मांगू सिरपेचो भल सिर रो सेवरो।
म्हे तो परणीज सजना री धीय वा म्हारे सिर चढ़े।
बनड़ा पीठड़ल्या दिन चार मलमल नहायलो।
बनड़ा जीमण रा दिन चार रूच रूच जीमल्यो।
बनड़ा चाबेनिया दिन चार रूच रूच चाबल्यो।
बनड़ा तोरण तारां री रात क्यूं कर भांधस्यां।
म्हारा सिमरथ बाबासा साथ भल भल भांधस्यां।
बनड़ा बनड़ी है इधक स्वरूप क्यूं कर निरख्यांजी।
म्हारे गेणां रो डिब्बो जी हाथ भर भर निख्यांजी।
म्हारे रुपया री थैली जी हाथ भल भल निरख्यांजी।