भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिंदायक जी के गीत / 3 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 7 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=राजस्थानी |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हारे गोबर पीली रुल मिले बीच घाली पांडु री रेखा।
सिंघ चढ़ हो बिंदायक बिदधड़ी।
म्हारे चांदी सोना रूल मिले बीच घालो म्होरां री रेखा।
सिंघ चढ़ हो बिंदायक बिरधड़ी।
म्हारे मोतीजी मूंगा रूल मिले घालो लालांरी रेखा।
सिंघ चढ़ हो बिंदायक बिरधड़ी।
म्हारे कांसीजी पीतल रूल मिले बीच घालो तांबा री रेखा।
सिंघ चढ़ हो बिंदायक बिरधड़ी।
म्हारे काजल टीकी रूल मिले बीच घालो हिंगलू री रेखा।
सिंघ चढ़ हो बिंदायक बिरधड़ी।
म्हारे सूरज चंद्रमाजी रूल मिले बीच म्हारे बाई सोदरा।
सिंघ चढ़ हो बिंदायक बिरधड़ी।