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सर्दी दीदी फिर न आना! / निशान्त जैन

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कान पकड़ते हैं बच्चे सब,
सर्दी दीदी फिर ना आना।
 
छोड़ काम घर में सब दुबके
भूल खेल बच्चे हैं छुपके,
गली-मोहल्ले की सड़कों पर
सन्नाटा छाया वीराना।
 
पेंसिल छूटे अब हाथों से
कोहरा निकले अब साँसों से,
सच पूछो तो बच्चों का है
ना पढ़ने का नया बहाना।
 
सर्दी तुम कितनी बेदर्दी
अब तो सचमुच हद ही कर दी,
अंग जमाए तन के सारे
बहुत हुआ छोड़ो भी सताना।
 
सूरज से दुश्मनी तुम्हारी
हाथापाई - मारामारी,
कुछ गुस्सा कम करो अगर तुम
हो जाए मौसम मस्ताना।
 
कोहरा-पाला-ओस गिराए
फिर भी चैन तुम्हें न आए,
हाथ जोड़ करते हैं विनती
बंद करो यह खेल दिखाना।