भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्पी / मंजूषा मन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजूषा मन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस चुप्पी में भी
गजब का शोर है
जिसे बनाया हथियार
लड़ने
तुम्हारे अत्याचारों से,

थप्पड़ की झन्नाटेदार गूंज
इसके प्रतिनद में
उभरी नहीं कोई सिसकी।

किसी सन्नाटे भरी रात को
फेंक दी गई सजी थाली
शोर करती है ठनठानाकर,
तब भी ओढ़ लेती है
मौन।

आँखों मे उभरी दर्द की लकीर
आवाज नहीं करती
वो हवा है वातावरण में फैली
किसी दिन
फट पड़ेगी दबते दबते
मिटा देगी तुम्हें
शोर सहित।