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पद / 5 / श्रीजुगलप्रिया
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प्रीतम रूप दिखाय लुभावै।
यातंे जियरा अति अकुलावै॥
जो कीजत सो तौ भल कीजत अब काहै तरसावै।
सीखी कहाँ निठुरता एतो दीपक पीर न लावै॥
गिरि के मरत पतंग जोति है ऐसेहु खेल सुहावै।
सुन लीजै बेदरद मोहना जिनि अब मोहिं सतावै॥
हमरी हाय बुरी या जग में जिन बिरहाग जरावै।
‘जुगल प्रिया’ मिलिबो अनमिलिबो एकहि भाँति लखावै॥