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इक शिगुफ़ता कली सा लगता है / अनु जसरोटिया
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इक शिगुफ़ता कली सा लगता है
जिस को देखंू तुझी सा लगता है
उफ़ तेरे इन्तिज़ार का आलम
एक पल इक सदी सा लगता है
खु़श्क आंखों से अपना ये रोना
एक सूखी नदी सा लगता है
ये तेरा खिलखिला के हंस देना
फूल की ताज़गी सा लगता है
अपना जीवन भी है कोई जीवन
झूटी-मूटी हसीं सा लगता है
बात करने का ये हसीं अन्दाज़
कष्ष्ण की बांसुरी सा लगता है
ले के फिरता है हसरतें दिल में
ना-समझ आदमी सा लगता है
तुम जो आये तो हो गया पुर नूर
घर मेरा चांदनी सा लगता है
चल पड़े हैं ख़ुदा का ले के नाम
रास्ता अजनबी सा लगता है