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जिस डगर से भी गुज़र जाऊँगी / अनु जसरोटिया
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जिस डगर से भी गुज़र जाऊँगी
बन के ख़ुश्बू सी बिखर जाऊँगी
चांद सूरज की तरह मैं रोशन
नाम मां बाप का कर जाऊँगी
जिस गली श्याम मिरा रहता है
उस गली शामों-सहर जाऊँगी
तू कन्हैया है मैं तेरी राधा
तेरी चाहत में संवर जाऊँगी
रानी झांसी सी निडर हूं मैं तो
मत समझना कि मैं डर जाऊँगी
वो जो है श्दूर -नगरश् का वासी
ढूंड़ने उस को किधर जाऊँगी
वक़्त की तेज़ हवा के आगे
सूखे तिनकों सा बिखर जाऊँगी